मोहिनी एकादशी 2023 : प्रत्येक वर्ष कई ग्रहण होते हैं। इनमें सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण शामिल होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन ग्रहणों का कारण क्या होता है? वैज्ञानिकों ने ग्रहण लगने के कई कारणों को समझाया है, लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इन ग्रहणों का सीधा संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा है। ग्रहण एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है जो हमारे बाह्य वातावरण के साथ - साथ हमारे आंतरिक मन पर भी अपना गहरा असर डालती है।
यूं तो ग्रहण का आना एक साधारण खगोलीय घटना है पर यदि यह ग्रहण किसी खास दिन पर पड़ जाए तो इसका हमारे जीवन पर लम्बा और स्थायी असर पड़ता है। ऐसा ही एक दिन है - मोहिनी एकादशी का दिन। मोहिनी एकादशी का सीधा सम्बन्ध ग्रहण से है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी है क्यूंकि आने वाले कुछ महीने हमारे जीवन में इसी ग्रहण के कारण फेरबदल कर सकते हैं। आइये जानते हैं इसके विषय में पूरी जानकारी।
मोहिनी एकादशी- इस एकादशी का है सम्बन्ध ग्रहण से
इस एकादशी का संबंध ग्रहण से होता है। हर महीने शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष में दो-दो एकादशी तिथियां होती हैं और साल में 24 या 26 एकादशी तिथियां होती हैं। सभी एकादशी तिथियों का अपना विशेष महत्व होता है और पूरे साल में पड़ने वाली सभी एकादशी का व्रत और पूजन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। मान्यता है कि वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है जिसका महत्व अन्य सभी एकादशी से अलग होता है। यह भगवान विष्णु का एकमात्र अवतार है, जिसमें उन्होंने स्त्री रूप धारण किया था। मोहिनी एकादशी को ग्रहण लगने से भी जोड़ा जाता है।
भगवान विष्णु को क्यों लेना पडा था मोहिनी अवतार?
जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब समुद्र से १४ बहुमूल्य रत्न निकले। जिनका देवताओं और असुरों ने सर्वसम्मति से बांटवारा किया। उसमें एक अमृत कलश भी था। अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद हो गया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण कर देवताओं की मदद की। मोहिनी एक बहुत सुंदर अप्सरा थी। सभी असुर टकटकी लगाए उसे देखते रह गए वे सभी उसपर मोहित हो गए। मोहिनी ने देवताओं और असुरों के बीच उत्पन्न विवाद को सुलझाने की गुजारिश की और उसने अमृत कलश को प्राप्त कर लिया। असुरों ने उसे अमृत कलश दे दिया। मोहिनी ने घोषणा की कि वह अमृत को देवताओं और असुरों के बीच बराबर में वितरित करेगी। इस तरह से देवता और असुर सभी अलग-अलग पंक्तियों में बैठ गए। मोहिनी देवताओं को अमृत कलश से अमृत पिलाने लगी और असुरों को अमृत देने का नाटक करने लगी।
स्वर्णबाहू और राहु - केतु
मोहिनी छल से केवल देवताओं को अमृत पान करवाने लगी। तभी एक स्वर्णबाहू नाम का दैत्य मोहिनी की चाल समझ गया। वह चुपचाप देवताओं के बीच जा बैठा। जैसे ही मोहिनी ने उसे अमृत पान करवाया, सूर्य चन्द्रमा की नज़र उस पर पड़ गयी। उन्होंने तुरंत मोहिनी बने विष्णु जी को उसका भेद बता दिया। विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से स्वर्णबाहू का गला काट दिया। और अमृत उसके कंठ से नीचे नहीं उतर पाया। राक्षस का सर राहु और उसका धड़ केतु कहलाया। तभी से राहु केतु , सूर्य व चन्द्रमा से अत्यंत घृणा करते हैं और उन्हें ग्रहण लगाते हैं।
इस कारण लगता है सूर्य और चंद्र को ग्रहण
भगवान विष्णु ने जब क्रोधित होकर असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया, तो स्वर्णबाहु अमृत का पान कर चुका था, इसलिए वह मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ। सूर्य और चंद्रमाँ के कारण ही राहु-केतु का जन्म हुआ और ये दोनों ही सूर्य और चंद्रमा से तीव्र द्वेष रखते हैं। अपना लक्ष्य सिद्ध न होने के कारण और अपना बदला लेने के लिए, वे अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा को निगल लेते हैं, जिस कारण सूर्य चन्द्रमा को ग्रहण लगता है।
कब है मोहिनी एकादशी?
पंचांग/Panchang के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 30 अप्रैल 2023 को रात 08 बजकर 28 मिनट पर होगी और अगले दिन 01 मई 2023 को रात 10 बजकर 09 मिनट पर इसका समापन होगा। इस दिन शुभ मुहूर्त में श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए।
पूजा मुहूर्त - सुबह 09.00 - सुबह 10.39 (1 मई 2023) मोहिनी एकादशी 2023 व्रत पारण समय (Mohini Ekadashi 2023 Vrat parana time)
मोहिनी एकादशी के व्रत का पारण: मोहिनी एकादशी के व्रत का पारण, 2 मई 2023 को सुबह 05 बजकर 40 से सुबह 08 बजकर 19 मिनट पर किया जाएगा। एकादशी व्रत पारण द्वादशी तिथि पर शुभ मुहूर्त में ही किया जाता है।
मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व
मोहिनी एकादशी/Mohini Ekadashi के विषय में विस्तृत जानकारी दी गई है। मोहिनी एकादशी व्रत का पालन करने से अनेक लाभ होते हैं। इस व्रत का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। इस व्रत का महत्व इससे भी ज्यादा है। जब समुद्र मंथन के दौरान अमृत निकला था, तब भगवान विष्णु ने दैत्यों से इसकी रक्षा करने के लिए मोहिनी एकादशी तिथि पर मोहिनी का रूप धारण किया था। असुरों को उनके मोह मायाजाल में फंसा कर सभी देवताओं को अमृतपान करवाया गया था। इस दिन श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए।
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